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'चार पैसे कमाने मैं आया शहर' (Char Paise Kamane Main Aya Sahar) - By Dipak Kumar Singh

2017-07-06 58 Dailymotion

वक़्त का ये परिंदा रुका है कहाँ <br />मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा <br />चार पैसे कमाने मैं आया शहर <br />गाँव मेरा मुझे याद आता रहा || <br /> <br /> <br />लौटता था मैं जब पाठशाला से घर <br />अपने हाथों से खाना खिलती थी माँ <br />रात में अपनी ममता के आँचल तले <br />थपकियाँ मुझे दे के सुलाती थी माँ || <br /> <br />सोच के दिल में एक टीस उठती रही <br />रात भर दर्द मुझको जागता रहा <br />चार पैसे कमाने मैं आया शहर <br />गाँव मेरा मुझे याद आता रहा || <br /> <br />सबकी आँखों में आँसू छलक आए थे <br />जब रवाना हुआ था शहर के लिए <br />कुछ ने माँगी दुआएँ की मैं खुश रहूं <br />कुछ ने मंदिर में जाके जलाए दिए || <br /> <br />एक दिन मैं बनूंगा बड़ा आदमी <br />ये तसव्वुर उन्हें गुदगुदाता रहा <br />चार पैसे कमाने मैं आया शहर <br />गाँव मेरा मुझे याद आता रहा || <br /> <br /> <br />माँ ये लिखती हर बार खत में मुझे <br />लौट आ मेरे बेटे तुझे है क़सम <br />तू गया जबसे परदेस बेचैन हूँ <br />नींद आती नहीं भूख लगती है कम || <br /> <br />कितना चाहा ना रोऊँ मगर क्या करूँ <br />खत मेरी माँ का मुझको रुलाता रहा <br />चार पैसे कमाने मैं आया शहर <br />गाँव मेरा मुझे याद आता रहा || <br /> <br /> -जसवंत सिंह

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