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'बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर' (Baith Jata Hoon Mitti Pe Aksar) - By Dipak Kumar Singh

2017-08-04 2 Dailymotion

बैठ जाता हूँ मिट्टी पे अक्सर, <br />क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है। <br /> <br />मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा, <br />चुपचाप से बहना और अपनी मौज में रहना। <br /> <br />ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ऐब नहीं है पर सच कहता हूँ मुझमे कोई फरेब नहीं है। <br /> <br />जल जाते हैं मेरे अंदाज़ से मेरे दुश्मन क्यूंकि एक मुद्दत से मैंने <br />न मोहब्बत बदली और न दोस्त बदले। <br />एक घड़ी ख़रीदकर हाथ मे क्या बाँध ली, <br />वक़्त पीछे ही पड़ गया मेरे। <br /> <br />सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से, <br />पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला। <br /> <br />सुकून की बात मत कर ऐ ग़ालिब…. <br />बचपन वाला ‘इतवार’ अब नहीं आता | <br /> <br />शौक तो माँ-बाप के पैसो से पूरे होते हैं, <br />अपने पैसो से तो बस ज़रूरतें ही पूरी हो पाती हैं। <br /> <br />जीवन की भाग-दौड़ में – <br />क्यूँ वक़्त के साथ रंगत खो जाती है ? <br />हँसती-खेलती ज़िन्दगी भी आम हो जाती है। <br /> <br />एक सवेरा था जब हँस कर उठते थे हम <br />और <br />आज कई बार <br />बिना मुस्कुराये ही शाम हो जाती है। <br /> <br />कितने दूर निकल गए, <br />रिश्तो को निभाते निभाते... <br />खुद को खो दिया हमने, <br />अपनों को पाते पाते। <br /> <br />लोग कहते है हम मुस्कुराते बहोत है, <br />और हम थक गए दर्द छुपाते छुपाते। <br /> <br />खुश हूँ और सबको खुश रखता हूँ, <br />लापरवाह हूँ फिर भी सबकी परवाह <br />करता हूँ। <br /> <br />मालूम है कोई मोल नहीं मेरा, <br />फिर भी, <br />कुछ अनमोल लोगो से <br />रिश्ता रखता हूँ। <br /> <br />–हरिवंशराय बच्चन

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