वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१७ अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />विलसन्ति महाभोगैर्विशन्ति गिरिगह्वरान् ।<br />निरस्तकल्पना धीरा अबद्धा मुक्तबुद्धयः ॥५३॥<br /><br />स्थितप्रज्ञ पुरुष महान भोगों में विलास करते हैं, और पर्वतों की गहन गुफाओं में भी प्रवेश करते हैं, किन्तु वे कल्पना बंधन एवं बुद्धि वृत्तियों से मुक्त होते हैं।<br /><br />प्रसंग:<br />क्या ज्ञानी पुरुष भी भोगविलास करते हैं?<br />स्थितप्रज्ञ पुरुष महान भोगों में विलास करते हैं, और पर्वतों की गहन गुफाओं में भी प्रवेश करते हैं, किन्तु वे कल्पना बंधन एवं बुद्धि वृत्तियों से मुक्त होते हैं।<br />अष्टावक्र किस भोगविलास की बात कर रहें है?<br />मुक्त कैसे पाए?<br />वास्तविक योगी का क्या पहचान है?