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भोग माने क्या? क्या भोग-भोग के वैराग्य पाया जा सकता है? || आचार्य प्रशांत, ओशो और भर्तृहरि पर (2017)

2019-11-05 7 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१३ दिसंबर, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />“भोगते रहने से आदत बनती है, और दमन से अन्दर विष इकट्ठा होता है।”<br />~ ओशो<br /><br />प्रसंग:<br />भोग माने क्या?<br />क्या भोग-भोग के वैराग्य पाया जा सकता है?<br />“भोगते रहने से आदत बनती है, और दमन से अन्दर विष इकट्ठा होता है।” ऐसा क्यों कहते हैं ओशो?<br />भोग तृप्ति क्यों नहीं दे पाता है?<br />वैराग्य क्या है?<br />वैराग्य को कैसे प्राप्त करें?<br />दमन करना कहाँ तक उचित है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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