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व्यक्ति इकट्ठा क्यों करता है? || आचार्य प्रशांत, संत कबीर पर (2015)

2019-11-24 0 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१८ फरवरी २०१५<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />दोहा:<br />साधु गांठ न बाँधई, उदर समाता लेय |<br />आगे पीछे हरि खड़े, जब मांगे तब देय ||<br />~ कबीर दास जी<br /><br />प्रसंग:<br />जितना पैसा इकठ्ठा करता हूँ उतना डर क्यों हावी होता है?<br />क्या पैसा इकठ्ठा करना और डर एक साथ चलता है?<br />क्या पैसा इकठ्ठा करना ज़रूरी है?<br />क्या इकठ्ठा करना हमारा स्वभाव है?<br />"साधु गांठ न बाँधई, उदर समाता लेय" इस भावार्थ का क्या आशय है?<br />संत कबीर इकठ्ठा करने को क्यों नहीं बोल रहे है?<br />धन जमा करना कितना आवश्यक है?<br />अमीरी क्या है?<br />असली धन क्या है?<br />बैभव क्या है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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