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ज्ञानी की क्या पहचान? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-24 7 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१२ अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से,<br /><br />न विक्षेपो न चैकाग्र्यं नातिबोधो न मूढता ।<br />न सुखं न च वा दुःखं उपशान्तस्य योगिनः ॥१०॥<br /><br />अपने स्वरुप में स्थित होकर शांत हुए तत्वज्ञ के लिए न विक्षेप है, और न तो एकाग्रता। न ज्ञान है, न सुख है न दुःख।<br /><br />स्वाराज्ये भैक्षवृत्तौ च लाभालाभे जने वने।<br />निर्विकल्पस्वभावस्य न विशेषोऽस्ति योगिनः॥११॥<br /><br />जो तत्वज्ञयोगी स्वभाव से ही निर्विकल्प है, उसके लिए अपने राज्य में, अथवा भिक्षा में, लाभ-हानि में, भीड़ में, अथवा सूने जंगल में कोई अंतर नहीं है।<br /><br />प्रसंग:<br />ज्ञान क्या है?<br />ज्ञानी की क्या पहचान हैं?<br />हम अपना छवि क्यों बनाना चाहते है?<br />क्या ज्ञानी को सुख दुःख का अनुभव नहीं होता है?<br />जो तत्वज्ञयोगी स्वभाव से ही निर्विकल्प है, उसके लिए अपने राज्य में, अथवा भिक्षा में, लाभ-हानि में, भीड़ में, अथवा सूने जंगल में कोई अंतर नहीं है।

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