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श्रीकृष्ण किसके लिए कर्म करते हैं? || आचार्य प्रशांत, कर्मयोग पर (2017)

2019-11-24 4 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१७ फ़रवरी, २०१७<br />बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />यदि ह्यहं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रितः |<br />मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः || २३ ||<br /><br />हे पार्थ! यदि मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूं तो बड़ी हानि हो जाए, क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।<br /><br />(अध्याय ३, श्लोक २३)<br /><br />उत्सीदेयुरिमे लोका न कुर्यां कर्म चेदहम् |<br />सङ्करस्य च कर्ता स्यामुपहन्यामिमाः प्रजाः || २४ ||<br /><br />यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का उत्पन्न करने वाला होऊं तथा प्रजा का नाश करने वाला बनूँ।<br /><br />(अध्याय ३, श्लोक २४)<br /><br />सक्ताः कर्मण्यविद्वांसो यथा कुर्वन्ति भारत |<br />कुर्याद्विद्वांस्तथासक्तश्र्चिकीर्षुर्लोकसङ्ग्रहम् || २५ ||<br /><br />हे भारत! जिस प्रकार अज्ञानी कर्म में आसक्त होकर कर्म करता है, उसी प्रकार विद्वान् भी अनासक्त होकर लोक-संग्रह के लिए कर्म करे।<br /><br />(अध्याय ३, श्लोक २५)<br /><br />न बुद्धिभेदं जनयेदज्ञानां कर्मसङ्गिनाम् |<br />जोषयेत्सर्वकर्माणि विद्वान्युक्तः समाचरन् || २६ ||<br /><br />ज्ञानी पुरुष सकाम कर्म में आसक्त अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम पैदा न करे। किन्तु स्वयं शास्त्रविहित कर्म करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाये।<br /><br /><br /><br /><br />(अध्याय ३, श्लोक २६)<br /><br />प्रसंग:<br />श्रीकृष्ण किसके लिए कर्म करते हैं?<br />यदि मैं कर्म न करूँ तो ये सब मनुष्य नष्ट हो जाएँ और मैं संकरता का उत्पन्न करने वाला होऊं तथा प्रजा का नाश करने वाला बनूँ। ऐसा क्यों कह रहे है श्रीकृष्ण?<br />वर्ण संकर क्या आशय है?<br />हे पार्थ! यदि मैं सावधान होकर कर्मों में न बरतूं तो बड़ी हानि हो जाए, क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। यहाँ "सावधान" कहने से क्या आशय है?

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