वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />२६ मई २०१३<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />तदा बन्धो यदा चित्तं किन्चिद् वांछति शोचति।<br />किंचिन् मुंचति गृण्हाति किंचिद् हृष्यति कुप्यति ॥८-१॥<br /><br />~ श्लोक १, अध्याय ८, अष्टावक्र गीता<br /><br />अर्थ: तब बंधन जानो, जब चित्त कुछ चाहता हो, शोक करता हो, जब वह कुछ छोड़ता हो, पकड़ता हो, कुछ पाने पर प्रसन्न होता होता हो, कुछ न मिलने पर क्रोधित होता हो।<br /><br />प्रसंग:<br />बंधन क्या है?<br />अष्टावक्र गीता के इस श्लोक को हम अपने दैनिक जीवन के सम्बन्ध में कैसे समझें?<br />बंधन से मुक्ति कैसे?<br />हमारे बंधन क्या हैं?<br />हमें बंधन प्रिय क्यों लगते हैं?<br />हम अपने बंधनों को तोड़ क्यों नहीं पाते हैं?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते