वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१२ अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />तत्त्वं यथार्थमाकर्ण्य मन्दः प्राप्नोति मूढताम् ।<br />अथवा याति संकोचममूढः कोऽपि मूढवत् ॥ १८-३२॥<br /><br />मूढ़ पुरुष यथार्थ तत्त्व का वर्णन सुनकर और अधिक मोह को प्राप्त होता है या संकुचित हो जाता है। कभी-कभी तो कुछ बुद्धिमान भी उसी मूढ़ के समान व्यवहार करने लगते हैं॥३२॥<br /><br />एकाग्रता निरोधो वा मूढैरभ्यस्यते भृशम् ।<br />धीराः कृत्यं न पश्यन्ति सुप्तवत्स्वपदे स्थिताः ॥ १८-३३॥<br /><br />मूढ़ पुरुष बार-बार (चित्त की ) एकाग्रता और निरोध का अभ्यास करते हैं। धीर पुरुष सुषुप्त के समान अपने स्वरूप में स्थित रहते हुए कुछ भी कर्तव्य रूप से नहीं करते॥३३॥<br /><br />अप्रयत्नात् प्रयत्नाद् वा मूढो नाप्नोति निर्वृतिम् ।<br />तत्त्वनिश्चयमात्रेण प्राज्ञो भवति निर्वृतः ॥ १८-३४॥<br /><br />मूढ़ पुरुष प्रयत्न से या प्रयत्न के त्याग से शांति प्राप्त नहीं करता पर प्रज्ञावान पुरुष तत्त्व के निश्चय मात्र से शांति प्राप्त कर लेता है॥३४॥<br /><br />प्रसंग:<br />मूढ़ कौन?<br />अष्टावक्र मूढ़ पुरुष किसे बता रहे है?<br />ज्ञानी होने का क्या मार्ग है?<br />मूढ़ता कैसे हटाए?<br />ज्ञानी को कैसे पहचाने?