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अनन्य प्रेम का क्या अर्थ है? || आचार्य प्रशांत, भगवद् गीता पर (2019)

2019-11-26 5 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />विश्रांति शिविर<br />7 सितम्बर, 2019<br />चंडीगढ़, पंजाब<br /><br />प्रसंग:<br />मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः ।<br />असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु ॥<br /><br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय 7, श्लोक 1)<br /><br />भावार्थ :<br />हे पार्थ! अनन्य प्रेम से मुझमें आसक्त चित तथा अनन्य भाव से मेरे परायण होकर<br />योग में लगे हुए तुम जिस प्रकार से सम्पूर्ण विभूति, बल, ऐश्वर्यादि गुणों से युक्त,<br />सबके आत्मरूप मुझको संशयरहित जानोगे, उसको सुनो!<br />------------------------<br />अनन्य प्रेम का क्या अर्थ है?<br />यह साधारण प्रेम से अलग कैसे?<br />क्या हम अनन्य प्रेम में जी सकते हैं?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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