वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१ जुलाई, २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br />----------------------------------------------------------------------------------------------------------<br />यह संसार क्या है-<br /><br />एक सनातन वृक्ष।<br /><br />इस वृक्ष का आश्रय है - प्रकृति।<br /><br />इसके दो फल हैं - सुख और दुःख;<br /><br />तीन जड़ें हैं - सत्व, रज और तम;<br /><br />चार रस हैं - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।<br /><br />इसके जानने के पाँच प्रकार हैं- श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, रसना और नासिका।<br /><br />इसके छः स्वभाव हैं - पैदा होना, रहना, बढ़ना, बदलना, घटना और नष्ट हो जाना।<br /><br />इस वृक्ष की छाल हैं सात धातुएँ - रस, रुधिर, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र।<br /><br />आठ शाखाएँ हैं - पाँच महाभूत, मन, बुद्धि और अहंकार।<br /><br />इसमें मुख आदि नवों द्वार खोड़र हैं।<br /><br />प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त और धनंजय - ये दस प्राण ही इसके दस पत्ते हैं।<br /><br />इस संसार रूपी वृक्ष पर दो पक्षी हैं - जीव और ईश्वर।<br />~ भागवत पुराण: दशम स्कन्ध: द्वितीय अध्याय (श्लोक २७ -३३)<br /><br />प्रसंग:<br />संसार रूपी वृक्ष क्या हैं?<br />उस पर विराजते दो पक्षी क्या हैं?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते