वीडियो जानकारी:<br /><br />२१ अप्रैल, २०१८<br />अद्वैत बोधस्थल,<br />ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br /><br />त्रयमेवं भवेन्मिथ्या गुणत्रयविनिर्मितम् ।<br />अस्य द्रष्टा गुणातीतो नित्यो ह्येकश्चिदात्मकः ॥ ५८॥<br /><br />भावार्थ: इस प्रकार सत्, रज और तम, इन तीनों गुणों से उत्पन्न हुई ये तीनों अवस्थाएँ मिथ्या हैं, किन्तु इस तीनों का दृष्टा गुणों से परे नित्य एक और चित्स्वरूप है।<br /><br />~ अपरोक्षानुभूति<br /><br />सत्, रज और तम का हमारे लिए क्या महत्व है?<br />सतोगुण को सबसे अच्छा क्यों कहा गया है?<br />जीव की तीन अवस्थाएँ कौन-कौन सी हैं?<br />तामसिक गुणों को कैसे छोड़ें?<br />क्या सात्विकता साधना के लिए अनिवार्य है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते