वीडियो जानकारी:<br /><br />२९ अप्रैल, २०१८<br />अद्वैत बोधस्थल,<br />ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br /><br />एभिरङ्गैः समायुक्तो राजयोग उदाहृतः ।<br />किञ्चित्पक्वकषायाणां हठयोगेन संयुतः ॥ १४३॥<br /><br />भावार्थ: जिनकी वासनायें अभी ज़रा कम क्षीण हुई हैं, अर्थात् जिनकी वासनायें अभी जाग्रत हैं, मजबूत हैं, उन्हें राजयोग, हठयोग के सहित करना चाहिए और जिनका चित्त परिपक्व है, वासनाहीन है, उनके लिए राजयोग अकेला ही सिद्धि देने के लिए काफ़ी है।<br /><br />परिपक्वं मनो येषां केवलोऽयं च सिद्धिदः ।<br />गुरुदैवतभक्तानां सर्वेषां सुलभो जवात् ॥ १४४॥<br /><br />भावार्थ: जिनका मन पूर्णतया शुद्ध हो चुका है, उनके लिए राजयोग मात्र ही काफ़ी है। और मन की शुद्धि उनको शीघ्रता से उपलब्ध हो जाती है जोकि गुरु और ईश्वर को समर्पित होते हैं।<br /><br />~ अपरोक्षानुभूति<br /><br />हठयोग की क्या उपयोगिता है?<br />अपरोक्षानुभूति को कैसे समझें?<br />राजयोग और हठयोग में क्या अंतर है?<br />साधना में हठयोग की क्या भूमिका होती है?<br />क्या हठयोग सिर्फ़ शरीर के लिए ही उपयोगी है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते
