वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१९अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />कुत्रापि न जिहासास्ति नाशो वापि न कुत्रचित् ।आत्मारामस्यधीरस्य शीतलाच्छतरात्मनः ।। (२३)<br /><br />जिसका अंतःकरण शीतल एवं स्वच्छ है, वो आत्माराम है। उस धीरपुरुष की न तो किसी वास्तु के त्याग की इच्छा होती है, और न तो कुछ पाने की आशा।<br /><br />प्रकृत्या शून्यचित्तस्य कुर्वतोऽस्य यदृच्छया ।<br />प्राकृतस्येव धीरस्य न मानो नावमानता ।।( २४)<br /><br />जिस धीर का चित्त स्वभाव से ही शून्य निर्विषय है, वह साधारण पुरुष के सामान प्रारब्धवश बहुत से काम करता रहता है परन्तु न उसे मान होता है, और न ही अपमान।<br /><br />कृतं देहेन कर्मेदं न मया शुद्धरूपिणा ।<br />इति चिन्तानुरोधी यः कुर्वन्नपि करोतिन ॥(२५)<br /><br />यह कर्म शरीर ने किया है, मैंने नहीं। मैं तो शुद्ध स्वरुप हूँ। इस प्रकार जिसने निश्चय कर लिया है, वह कर्म करता हुआ भी नहीं करता।<br /><br />अतद्वादीव कुरुते न भवेदपि बालिशः ।<br />जीवन्मुक्तः सुखी श्रीमान् संसरन्नपि शोभते ॥(२६)<br /><br />सुखी एवं श्रीमान जीवनमुक्त पुरुष, सत्यवादी विषयी के सामान काम करता है, परन्तु विषयी नहीं होता। यह तो संसार का कार्य करता हुआ भी अतिशय शोभा को प्राप्त होता है।<br /><br />नाविचारसुश्रान्तो धीरो विश्रान्तिमागतः।<br />न कल्पते न जाति न शृणोति न पश्यति॥ (२७)<br /><br />वह न कल्पना करता है, न जानता है, न सुनता है, न देखता है। वो धीर पुरुष अनेक विचारों से थककर अपने स्वरुप में विश्राम पा चुका है।<br /><br />प्रसंग:<br />तुम्हारा स्वरुप क्या?<br />तुम्हें विश्राम कहाँ?<br />क्या धीर पुरुष न त्याग करता है न प्राप्त करता है?<br />सत्यवादी विषयी के सामान कैसे कार्य करें?<br />हम चैन क्यों नहीं पाते है?