वीडियो जानकारी:<br /><br /><br />प्रसंग:<br /><br />दोषोऽपि विहितः श्रुत्या मृत्योर्मृत्युं स गच्छति।<br />इह पश्यति नानात्वं मायया वञ्चितो नरः॥४८॥<br /><br />भावार्थ:<br />‘मृत्यु से मृत्यु को प्राप्त होता है’ ऐसा कहकर श्रुति ने दोष भी बतलाया है। मनुष्य माया से ठगा जाकर ही संसार में नानात्व देखता है।<br /><br />~ अपरोक्षानुभूति<br /><br />संसार में इतनी विविधता क्यों है?<br />मनुष्य कौन सी मूल अतृप्ति के कारण संसार में विविधता देखता है?<br />सबका संसार अलग-अलग क्यों होता है?<br /><br /><br />शब्दयोग सत्संग,<br />१९ अप्रैल, २०१८<br />अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br />संगीत: मिलिंद दाते