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पाएँ कि नहीं? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-29 11 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१२ अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />क्व धर्मः क्व च वा कामः क्व चार्थः क्व विवेकिता।<br />इदं कृतमिदं नेति द्वन्द्वैर्मुक्तस्य योगिनः॥१२॥<br />यह कर लिया और वह कार्य शेष है। इन द्वंदों से जो मुक्त है, उसके लिए द्वन्द कहाँ, काम कहाँ, अर्थ कहाँ और विवेक भी कहाँ है?<br /><br />कृत्यं किमपि नैवास्ति न कापि हृदि रंजना।<br />यथा जीवनमेवेह जीवन्मुक्तस्य योगिनः॥१३॥<br />जीवनमुक्त ज्ञानी के लिए न तो कुछ कर्तव्य है, और न ही उसके ह्रदय में अनुराग है। जिस प्रकार जीवन बीते, यही उसकी स्थति है।<br /><br />प्रसंग:<br />संतुष्टि कैसे मिले?<br />क्या पाकर संतुष्ट हुआ जा सकता है?<br />जीवन में हम कभी भी संतुष्ट क्यों नहीं हो पाते?<br />जीवन में संतुष्टि पाने के उपाय क्या हैं?<br />सुख कहाँ है?

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