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संत कौन, संसारी कौन? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2017)

2019-11-29 5 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br /><br />शब्दयोग सत्संग<br />१७ अप्रैल २०१७<br />अद्वैत बोधस्थल, नॉएडा<br /><br />अष्टावक्र गीता, अध्याय १८ से<br />धीरो लोकविपर्यस्तो वर्तमानोऽपि लोकवत् ।<br />नो समाधिं न विक्षेपं न लोपं स्वस्य पश्यति ॥१८॥<br /><br />तत्वज्ञ पुरुष तो संसारियों से उल्टा ही होता है, वो सामान्य लोगों जैसा व्यवहार करता हुआ भी अपने स्वरुप में न समाधि देखता है, न विक्षेप और न लेप ही।<br /><br />प्रसंग:<br />संत कौन है?<br />सच्चा संत कैसे पहचाने?<br />संसारी कौन हैं?<br />संत और संसारी में भेद है?<br />झूठे संत का क्या पहचान है?<br />क्या संत का आचरण संसारी से अलग होता है?<br />संत कहने का क्या आशय हैं?<br />संत से हमारा क्या नाता है/क्या सम्बन्ध है?<br />कैसे जाने की हम संत के करीब है या दूर है?<br />हम संत कैसे बन सकते है?<br />संत और संसारी के प्रेम में क्या अंतर है?<br />संसारी के लिए प्रेम क्या है?<br />संत प्रेम किसे कहते है?

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