वीडियो जानकारी:<br />शब्दयोग सत्संग, पार से उपहार शिविर<br />१३ अक्टूबर, २०१९<br />अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br />महाभूतान्यहंकारो बुद्धिरव्यक्तमेव च ।<br />इन्द्रियाणि दशैकं चपञ्च चेन्द्रियगोचराः ॥<br /><br />पाँच महाभूत, अहंकार, बुद्धि और मूल प्रकृति भी<br />तथा दस इन्द्रियाँ, एक मन और<br />पाँच इन्द्रियों के विषय अर्थात शब्द, स्पर्श, रूप, रस और गंध॥<br /><br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १३, श्लोक ६)<br />--<br />तस्मात्सर्वेषु कालेषु मामनुस्मर युध्य च।<br />मय्यर्पितमनोबुद्धि - र्मामेवैष्यस्यसंशयम्॥<br /><br />इसलिए हे अर्जुन! तू सब समय में निरंतर मेरा स्मरण कर और युद्ध भी कर।<br />इस प्रकार मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त होकर _x000B_तू निःसंदेह मुझको ही प्राप्त होगा॥<br /><br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १३, श्लोक ७)<br />--<br />पुरुषः प्रकृतिस्थो हि भुङ्क्ते प्रकृतिजान्गुणान् ।<br />कारणं गुणसङ्गोऽस्य सदसद्योनिजन्मसु ॥<br /><br />प्रकृति में स्थित ही पुरुष प्रकृति से उत्पन्न त्रिगुणात्मक पदार्थों को भोगता है और<br />इन गुणों का संग ही इस जीवात्मा के अच्छी-बुरी योनियों में जन्म लेने का कारण है।<br /><br />श्रीमद्भगवद्गीता (अध्याय १३, श्लोक २२)<br />--<br />हम क्यों इस संसार में लिप्त रहते हैं?<br />हमें संसार ऐसा क्या मिलता प्रतीत होता है?<br />हम इस जाल से बाहर कैसे आयें?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते