वीडियो जानकारी:<br />शब्दयोग सत्संग,<br />२९ नवम्बर, २०१८<br />अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />दोहा:<br />दरदहि बूझै दरदवंद, जाके दिल होवै।<br />क्या जाणै दादू दरद की, जो नींद भरि सोवै॥<br /><br />अर्थ: कोई दुखी ही दूसरे दुखी का दर्द समझ सकता है और दूर कर सकता है। अपने स्वार्थ और सुख के विषयों की नींद में डूबा व्यक्ति नहीं समझ सकता।<br /><br />~ संत दादू दयाल<br /><br />प्रसंग:<br />दर्द को कैसे समझें?<br />जीव का असली दर्द कौन सा है?<br />दर्द को कैसे पहचानें?<br />दर्द से मुक्ति कैसे मिले?<br />कौन समझेगा हमारे दर्द?<br />दर्द से पूर्ण मुक्ति कैसे मिले?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते