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बहते हुए लहू का हिसाब चाहता हूं, मैं गुलाब नहीं इंकलाब चाहता हूं

2020-01-24 2 Dailymotion

शशि भूषण समद<br />जमीं पे बहते लहू का हिसाब चाहता हूं<br />मैं अब गुलाब नहीं इंकलाब चाहता हूं।<br />मेरे वो ख़्वाब जिन्हें रोजो सब जलाते हो।<br />सरे निगाह…..मैं फिर से वो ख़्वाब चाहता हूँ<br />जमीं पे बहते लहू का हिसाब चाहता हूं<br />मैं अब गुलाब नहीं…. इंकलाब चाहता हूं।<br />पियु तो झूम के बिस्मिल के तराने गाऊ<br />मैं अपने वास्ते ऐसी शराब चाहता हूं।<br />जमीं पर बहते लहू का हिसाब चाहता हूं<br />मैं अब गुलाब नहीं ….इंकलाब चाहता हूं।<br />मेरे सवाल पे ….कैसे उछल के भागता है<br />मुझे जवाब तो दे दे …. जवाब चाहता हूं।<br />जमीं पर बहते लहू का हिसाब चाहता हूं<br />मैं अब गुलाब नहीं… इंकलाब चाहता हूं<br />जरा सी बात उन्हें क्यों समझ नही आती<br />मैं सिर्फ तुमसे…कलम और किताब चाहता हूं।<br />मैं अब गुलाब नहीं ..इंकलाब चाहता हूं<br /><br />~शशि भूषण समद

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