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सही आचरण क्या? दान और व्रत आदि का क्या महत्व है? || आचार्य प्रशांत, उत्तर गीता पर (2019)

2020-03-29 17 Dailymotion

वीडियो जानकारी:<br />अद्वैत बोध शिविर, 27.12.19, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत<br /><br />प्रसंग: <br />दानं व्रतं ब्रह्मचर्यं यथोक्तव्रतधारणम्।<br />दमः प्रशान्तता चैव भूतानां चानुकम्पनम्॥१४॥<br /><br />संयमश्चानृशंस्यं च परस्वादान वर्जनम्।<br />व्यलीकानामकरणं भूतानां यत्र सा भुवि॥१५॥<br /><br />मातापित्रोश्च शुश्रूषा देवतातिथिपूजनम्।<br />गुरु पूजा घृणा शौचं नित्यमिन्द्रियसंयमः॥१६॥<br /><br />प्रवर्तनं शुभानां च तत्सतां वृत्तमुच्यते।<br />ततो धर्मः प्रभवति यः प्रजाः पाति शाश्वतीः॥१७॥<br /><br />भावार्थ: दान, व्रत, ब्रह्मचर्य, शास्त्रोक्त रीति से वेदाध्ययन, इन्द्रियग्रह, शान्ति, समस्त प्राणियों पर दया, <br />चित्त का संयम, कोमलता, दूसरों के धन लेने की इच्छा का त्याग, संसार के प्राणियों का मन से भी <br />अहित न करना, माता-पिता की सेवा, देवता, अतिथि और गुरुओं की पूजा, दया, पवित्रता, <br />इन्द्रियों को सदा काबू में रखना तथा शुभ कर्मों का प्रचार करना- यह सब श्रेष्ठ पुरुषों का बर्ताव कहलाता है। <br />इनके अनुष्ठान से धर्म होता है, जो सदा प्रजावर्ग की रक्षा करता है।<br />~उत्तर गीता (अध्याय ३, श्लोक १४, १५, १६, १७)<br /><br />~ दान और व्रत का क्या अर्थ है?<br />~ दान में क्या देना चाहिए?<br />~ व्रत में क्या त्यागना चाहिए?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते

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