जिस शहर को अपने हाथों से बनाया, वक्त आने पर उसने कुछ नहीं खिलाया <br />सुलगती धूप में निकल पड़ा तू अपना घर की ओर <br />जेब में पैसे नहीं, पैरों में चप्पल नहीं <br />सिर्फ़ अपनी तक़दीर हाथों में लिए चल दिए मिलों दूर, <br /> <br />AC के कमरों में रहने वाले हम क्या समझेंगे तुम्हारा दर्द <br />सरकार ने उठाए एक दो कदम मगर सफ़र बहुत लम्बा है तेरा, <br /> <br />कोरोना के इस काल में देखे हमने कई श्रवण कुमार, <br />कंधों पर लांघते चले देश का वो पूरा भार <br />कोई आने वाले काल को हाथ गाड़ी से खींच रहा, <br />कोई डूबते सूरज को साइकिल पर ले जा रहा <br /> <br />ज़िन्दगी और मौत से लड़ते ये सिपाही, <br />अपनी ही ज़ुबानी सुना रहे एक दर्द भरी कहानी <br /> <br />घर पहुचने की चाह में टूटे कई पायल, <br />सड़क के अनगिनत हादसों में हुए सैकड़ों घायल <br /> <br />कभी औरंगाबाद, कभी और्रेयाय, कभी सागर तो कभी गुना, <br />इस मुल्क ने कर दी तेरी हर चीख को अनसुना <br /> <br />घर की चौखट पर बूढ़ी माँ करती रही तेरा इंतेज़ार, <br />शहर से लौटेगा उसका चिराग बस यही दुआ करती रही बार बार <br /> <br />लॉकडाउन की आड़ में निकला ना कोई नेता, <br />Twitter पर ही बनते रहे सब देवी देवता और अभिनेता <br /> <br />कोरोना ने इस देश को हराया, तो सबसे पहले इस देश ने तुझे ठुकराया, <br />गरीबी ने सबको डराया, शायद ऊपर वाले ने ही तुझे अपना बनाया <br /> <br />इस मुश्किल घड़ी में खुदा से मेरी बेस एक ही है मन्नत, <br />मुसाफिरों की बनी राहे हिम्मत, खतम हो उनकी पीड़ा और शहीदों को मिले जन्नत…