Surprise Me!

राजनीति में क्यों अलग होती है गुरु शिष्य परंपरा देखिये कार्टूनिस्ट सुधाकर का नजरिया

2020-07-05 1 Dailymotion

इतवार को गुरु पूर्णिमा पर्व मनाया गया. भारतीय संस्कृति में गुरु पूर्णिमा का बड़ा ही महत्व है, क्योंकि हमारी संस्कृति में गुरु को ईश्वर से भी बढ़कर दर्जा दिया गया है .<br />"गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय <br />बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय"<br />उक्त पंक्तियों में गुरु के महत्व को बखूबी दर्शाया गया है . यद्यपि मां बाप जन्म देते हैं लेकिन लेकिन वो गुरु ही होते हैं जो आदमी को ज्ञान, गुण और संस्कार सिखा कर मनुष्य बनाते हैं. हालांकि गुरु का ऋण कभी भी चुकाया नहीं जा सकता, लेकिन इस दिन के माध्यम से गुरु के प्रति आभार प्रकट किया जाता है. इस दिन लोग अपने गुरु का वंदन करते हैं और उनके दिए ज्ञान के लिए उनका आभार जताते हैं. लेकिन राजनीति का मामला अलग है,यहां अक्सर चेले वक्त आने पर अपने राजनीति गुरु को लांघकर राजनीति का सफर तय कर लेते हैं. यहां 'एकलव्य' गुरु ',द्रोणाचार्य' को अंगूठा नहीं देता,बल्कि मौका लगने पर अंगूठा काट लेता है. राजनीति की सच्चाई को बयां कर रहा है कार्टूनिस्ट सुधाकर का यह कार्टून

Buy Now on CodeCanyon