जयपुर। आंकड़ों की मानें तो देश के 30 से 40 प्रतिशत लोग सामान्य मेंटल डिस्आॅर्डर से पीड़ित हैं, लेकिन वे इस मामूली बीमारी का इलाज इसलिए नहीं लेते, क्योंकि वे मानसिक बीमारी को सोशल शेम मानते हैं। हमारे देश में आज भी मेंटल हैल्थ का मतलब पागलपन माना जाता है। इसलिए लोग ना इस पर बात करते हैं और ना ही किसी मनोचिकित्सक से सलाह करते हैं। जबकि सामान्य मेंटल डिस्आॅर्डर किसी को भी हो सकता है और कुछ दिनों की दवा से यह बिलकुल ठीक हो सकता है। लेकिन लोगों में जागरूकता की कमी के कारण यह बड़े अवसाद का रूप ले लेता है। यही अवसाद जिंदगी पर भारी पड़ता है। लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए 10 अक्टूबर से विश्व मानसिक स्वास्थ्य सप्ताह मनाया जाता है। इस सप्ताह में अस्पतालों में कार्यशालाएं आयोजित कर मेंटल हैल्थ पर ध्यान देने की अपील की जाती है।<br /><br />समस्या पर बात करें<br />विशेषज्ञों का कहना है कि सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि लोग कई तरह की मानसिक समस्याओं से गुजरते हैं, लेकिन लोग पागल ना कह दें, इसलिए इस पर बात ही नहीं करते। इस पर एक जागरूकता अभियान में शामिल होते हुए बॉलीवुड एक्टर आमिर खान ने कहा था कि जिस तरह शारीरिक हाइजीन जरूरी है, वैसे ही मानसिक हाइजीन भी। हमें अपने मानसिक विकारों को दूर करने के लिए इस पर बातचीत करना चाहिए।<br />साइड इफेक्ट ना मानें<br />मनोचिकित्सक डॉ. मनीषा गौड़ का कहना है कि मानसिक समस्या पर दवाई लेने की बात आती है तो लोग इसके साइड इफेक्ट से डरते हैं। सबसे पहले यही पूछते हैं कि इससे उन्हें क्या समस्या होगी? जबकि हम बुखार, जुकाम या अन्य स्वास्थ्य समस्या के लिए दवा लेने में जरा भी नहीं सोचते। ठीक इसी तरह मानसिक समस्याओं की दवा काम करती है। वो आपको ठीक करती है, साइड इफेक्ट एक भ्रम होता है।<br /><br />मानसिक विकार पर जागरूक रहें<br />डॉ. मनीषा गौड़ कहती हैं कि कई तरह के अवसाद, एंजायटी, अनिद्रा की शिकायत के बाद भी लोग डॉक्टर से सलाह नहीं लेते। वे जागरूक नहीं हैं। वे सोचते हैं कि मेंटल हैल्थ मतलब पागलपन। जबकि आपके मन में बुरे विचार आ रहे हैं। आप अपने काम नहीं कर पा रहे। दैनिक क्रियाओं में दिक्कत है तो आपको साइकोलॉजिस्ट की जरूरत है। आपके शरीर के प्रोपर काम करने के लिए ब्रेन का ठीक होना बेहद जरूरी है।<br /><br />देश में मनोचिकित्सक की जरूरत<br />देश में मनोविकारों की बात करें तो करीब 20 प्रतिशत लोग ऐसी गंभीर समस्या से ग्रसित हैं। जबकि उनके लिए पर्याप्त चिकित्सकीय सुविधाएं देश में नहीं हैं। देश में 4 हजार से कम मनोचिकित्सक हैं, जबकि जरूरत 20 हजार मनोचिकित्सकों की है। <br /><br />