मसाने की होली : रंग या पानी नहीं, भस्म से खेली जाती है होली<br />#kashikiholi #Bhasmkiholi #kashi #manikarnikaghatholi #vanarasi<br />काशी की होली का भी अपना महत्व है। खासतौर पर मसाने की होली, जहां न रंग, न पिचकारी और न ही गुलाल का उपयोग होता है। यहां भोले बाबा के भक्त चिता की भस्म से होली खेलते हैं। रंगभरी एकदाशी के अलगे दिन यानी फाल्गुल शुक्ल द्वादशी को महाश्मशानपर चिता भस्म के साथ होली खेली जाती है। यह होली भगवान महाश्मशानाथ मतलब भूत भावनशंकर अपने गणों भूत-प्रेत, पिशाच, यक्ष, गंधर्व, राक्षस आदि के साथ खेलते हैं। शिवपुराण और दुर्गा सप्तशती में इसका उल्लेख भी मिलता है। इसके लिए कहा जाता है कि खुद भूतभावन भगवान शंकर ने अपने अति प्रियगणों को मनुष्यों और देवी देवाताओं से दूर रहने का आदेश दे रखा है। लिहाजा रंग भरी एकादशी में जब देवता और मनुष्य बाबा के साथ होली खेलते हैं तो वो इससे अलग रहते हैं। ऐसे में वो अगले दिन मणिकर्णिकातीर्थ पर बाबा के साथ चिताभस्म की होली खेलते हैं।<br />