हिंदी व्यंग्य के पितामह हरिशंकर परसायी के एक व्यंग्य का छोटा सा हिस्सा पढ़िए- “अब दोनों राजनीतिक दलों में लड़ाई शुरू हो गई. पहले वे एक-दूसरे के ‘साले’ बने. इस रिश्ते के कायम होने से मुझे विश्वास हो गया कि देश में मिली-जुली स्थिर सरकार बन जाएगी. फिर कुछ ‘मादर, फादर’ वगैरह हुआ. इससे लैंगिक नैतिकता का एक मानदंड स्थापित हुआ. फिर मार-पीट हुई. मैंने कहा, ‘आप दोनों का काम बिना पैसे खर्च किए हो गया. आपके अपने सर फूटे हुए हैं और नाक से खून बह रहा है. अब प्रचार कीजिए जनतंत्र के लिए और देश के लिए. मैं गवाह बनने को तैयार हूं.”<br /> <br />इसी तरह हम सब गवाह बने पीछे हफ्ते टेलीविजन पत्रकारिता के चरमोत्कर्ष का. पहुंचाने का श्रेय मिला #deepakchaurasia को. दीपक चौरसिया या उनकी पीढ़ी के वो तमाम पत्रकार जो टीवी पत्रकारिता की इस सद्गति के जिम्मेदार हैं, उनसे कुछ कड़े सवाल करने का यह वक्त है. इनके दोहरे चरित्र पर बात होनी चाहिए. हालात यहां तक बिगड़े हैं तो साल दर साल इन पत्रकारों ने धकियाकर उसे यहां तक पहुंचाया है.<br /><br />हिप्पोक्रिसी यानि पाखंड हमारे देश की टीवी पत्रकारिता का संकट बन चुका है. #SudhirChaudhary, #AmishDevgan, #AnjanaOmKashyap, श्वेता सिंह, रूबिका लियाकत, सुमित अवस्थी, किशोर अजवाणी तक एक लंबी फेहरिस्त है. <br /><br />Sign up for our all-new media newsletter: https://bit.ly/StopPressNewsletter<br /><br />Support independent media and subscribe to Newslaundry: http://bit.ly/paytokeepnewsfree<br /><br />To watch this and many more videos, click on http://www.newslaundry.com/<br /><br />Follow and engage with us on social media:<br />Facebook: https://facebook.com/newslaundry<br />Twitter: https://twitter.com/newslaundry<br />Instagram: https://instagram.com/newslaundry