पर्वत कहता शीश उठाकर,<br />तुम भी ऊँचे बन जाओ।<br />सागर कहता है लहराकर,<br />मन में गहराई लाओ।<br /><br />समझ रहे हो क्या कहती हैं<br />उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग<br />भर लो भर लो अपने दिल मेंपृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो<br />कितना ही हो सिर पर भार,<br />नभ कहता है फैलो इतना<br />ढक लो तुम सारा संसार! ।<br />– सोहनलाल द्विवेदी (भारतीय कवि)<br />मीठी-मीठी मृदुल उमंग! ।