वीडियो जानकारी: शास्त्र कौमुदी लाइव, 17.05.2020, ग्रेटर नॉएडा, उत्तर प्रदेश, भारत<br /><br />प्रसंग:<br />अहड्ढारकृतं बन्धमात्मनोऽर्थविपर्ययम् ।<br />विद्वान् निर्विद्य संसारचिन्तां तुर्ये स्थितस्त्यजेत्॥<br />यह बन्धन अहंकार की ही रचना है और यही आत्मा के परिपूर्णतम सत्य, <br />अखण्डज्ञान और परमानन्दस्वरूप को छिपा देता है। इस बात को जानकर विरक्त हो <br />जाए और अपने तीन अवस्थाओं में अनुगत तुरीयस्वरूप में होकर संसार की चिन्ता को छोड़ दे।<br />~(हंस गीता, श्लोक 29)<br /><br />~ आध्यात्मिक साधक अपनी तरक्की को कैसे नापें?<br />~ साधक अपना मार्ग कैसे चुने?<br />~ क्या साधना भी झूठी होती है? <br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~