वीडियो जानकारी: 10.03.2017, शब्दयोग सत्संग, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा<br /><br />प्रसंग:<br /><br />मय्येव मन आधत्स्व मयि बुद्धिं निवेशय |<br />निवसिष्यसि मय्येव अत ऊर्ध्वं न संशय: ||8||<br />भावार्थ -<br />हे अर्जुन!<br />तू अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर<br />और मुझमें ही अपनी बुद्धि को लगा,<br />इस प्रकार तू निश्चित रूप से मुझमें ही सदा निवास करेगा,<br />इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है।<br /><br />अथ चित्तं समाधातुं न शक्नोषि मयि स्थिरम् |<br />अभ्यासयोगेन ततो मामिच्छाप्तुं धनञ्जय ||9||<br />भावार्थ -<br />हे अर्जुन!<br />यदि तू अपने मन को मुझमें स्थिर नहीं कर सकता है,<br />तो भक्तियोग के अभ्यास द्वारा,<br />मुझे प्राप्त करने की इच्छा उत्पन्न कर।<br /><br />अभ्यासेऽप्यसमर्थोऽसि मत्कर्मपरमो भव |<br />मदर्थमपि कर्माणि कुर्वन्सिद्धिमवाप्स्यसि ||10||<br />भावार्थ -<br />यदि तू भक्तियोग का अभ्यास भी नहीं कर सकता है,<br />तो केवल मेरे लिए कर्म करने का प्रयत्न कर।<br />इस प्रकार तू मेरे लिए कर्मों को करता हुआ,<br />मेरी प्राप्ति रूपी परम सिद्धि को ही प्राप्त करेगा।<br /><br />अथैतदप्यशक्तोऽसि कर्तुं मद्योगमाश्रित: |<br />सर्वकर्मफलत्यागं तत: कुरु यतात्मवान् ||11||<br />भावार्थ -<br />यदि तू मेरे लिए कर्म भी नहीं कर सकता है,<br />तो मुझ पर आश्रित होकर<br />सभी कर्मों के फल का त्याग करके, समर्पण के साथ,<br />आत्म-स्थित महापुरुष की शरण ग्रहण कर,<br />उनकी प्रेरणा से कर्म स्वतः ही होने लगेगा।<br />~ श्रीमद्भागवद्गीता अध्याय - १२<br /><br />~ भक्तियोग का अभ्यास कैसे करें?<br />~ 'अपने मन को मुझमें ही स्थिर कर' पंक्ति से श्री कृष्ण का क्या आशय है?<br />~ कौनसा कर्म श्री कृष्ण को समर्पित हो सकता है?<br />~ आत्म-स्थित महापुरुष की पहचान कैसे हो सकती है?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~