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द्वैत और अज्ञान से बाहर कैसे निकलें? || आचार्य प्रशांत, अपरोक्षानुभूति पर (2018)

2024-02-08 0 Dailymotion

वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 21.04.2018, अद्वैत बोधस्थल, ग्रेटर नॉएडा, भारत<br /><br />प्रसंग:<br /><br />आदि शंकराचार्य का कथन है-<br /><br />यत्त्राज्ञानाद्भवेद्द्वैतमितरस्तत्त्र पश्यति ।<br />आत्मत्वेन यदा सर्वं नेतरस्तत्र चाण्वपि ॥ ५३ ॥<br />भावार्थ: जहाँ अज्ञान से द्वैतभाव होता है, वहीं कोई और दिखलाई देता है।<br />जब सब आत्मरूप ही दिखलाई देता है, तब अन्य कुछ भी नहीं रहता ।<br /><br />यस्मिन्सर्वाणि भूतानि ह्यात्मत्वेन विजानतः ।<br />न वै तस्य भवेन्मोहो न च शोकोऽद्वितीयतः ॥ ५४ ॥<br />भावार्थ: उस अवस्था में सम्पूर्ण भूतों को आत्मभाव से जानने वाले उस महात्मा<br />को कोई दूसरा न रहने के कारण न मोह होता है और न शोक ही।<br /><br />एवं देहद्वयादन्य आत्मा पुरुष ईश्वरः ।<br />सर्वात्मा सर्वरूपश्च सर्वातीतोऽहमव्ययः ॥ ४० ॥<br />भावार्थ: आत्मा स्थूल एवं सूक्ष्म, दोनों प्रकार के शरीरों से भिन्न है।<br />अतः मैं सर्वात्मा, सर्वरूप, अविनाशी और सबसे परे हूँ।<br />~ अपरोक्षानुभूति<br /><br />~ द्वैत और अज्ञान से बाहर कैसे निकलें?<br />~ आत्मरूप क्या है?<br />~ महात्मा को मोह और शोक क्यों नहीं होता?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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