<br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: 25.02.24, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ अपनों को खोने के दुख को कैसे दूर करें?<br />~ जब कोई अपना दूर हो जाए तो क्या करें?<br />~ अपनों को खोने का दुख बर्दाश्त नहीं होता<br />~ मृत्यु और जीवन की घटना को कैसे समझें?<br /><br />काल काल सब कोई कहे, काल न जाने कोय।<br />जेती मन की कल्पना, काल कहावे सोय।।<br /><br />बैद मुआ रोगी मुआ, मुआ सकल संसार।<br />एक कबीरा ना मुआ, जाके राम आधार।।<br /><br />पत्ता बोला वृक्ष से, सुनो वृक्ष बनराय| <br />अब के बिछुड़े ना मिले, दूर पड़ेंगे जाय ||<br /><br />वृक्ष बोला पात से, सुन पत्ते मेरी बात।<br />इस घर की ये रीति है, एक आवत एक जात ।।<br /><br />चले गए सो ना मिले, किसको पूछूँ बात।<br />मात पिता सुत बाँधवा, झूठा सब संघात।<br /><br />दुर्लभ मानुष जन्म है, देह न बारम्बार।<br />तरुवर ज्यों पत्ता झड़े, बहुरि न लागे डार।।<br /> <br />जिस मरनी से जग डरे, मेरो मन आनंद।<br />कब मरिहों कब भेटीहो, पूरण परमानंद।।<br /><br />झूठे सुख को सुख कहे, मानत है मन मोद ।<br />जगत चबैना काल का, कुछ मुख में कुछ गोद।।<br /><br />माया मरी न मन मरा , मर -मर गए शरीर,<br />आशा तृष्णा न मरी ,कह गए दास कबीर।<br /><br />गगन दमामा बाजिया, पड़े निसाने घाव।<br />खेत बुहारे सूरमा, मोहे मरण का चाव।।<br /><br />अपना तो कोई नहीं, हम काहू के नाँहि।<br />पार पहुँची नाव जब, मिलि सब बिछुड़े जाँहि।।<br /><br />अपना तो कोई नहीं, देखा ठोकि बजाय।<br />अपना अपना क्या करै, मोह भरम लपटाय।।<br /><br />देह धरे का दंड है सब काहू को होय।<br />ज्ञानी भुगते ज्ञान से अज्ञानी भुगते रोय॥<br /><br />सुखिया ढूँढ़त मैं फिरूँ, सुखिया मिलै न कोय ।<br />जाके आगे दुख कहूँ, पहिले ऊठै रोय ।।<br /><br />जब से मैंने जन्म लिया, कभी न पाया सुख।<br />द्वार द्वार मैं फिरा, पाते पाते दुख।<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~