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इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना? || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2019)

2024-05-05 17 Dailymotion

पूरा वीडियो: इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना? || आचार्य प्रशांत, बाबा बुल्लेशाह पर (2019)<br />लिंक: <br /><br /> • इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना? || आ... <br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br />⚡ आचार्य प्रशांत से जुड़ी नियमित जानकारी चाहते हैं?<br />व्हाट्सएप चैनल से जुड़े: https://whatsapp.com/channel/0029Va6Z...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br /> आचार्य प्रशांत के काम को गति देना चाहते हैं?<br />योगदान करें, कर्तव्य निभाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/contri...<br /><br /> आचार्य प्रशांत के साथ काम करना चाहते हैं?<br />संस्था में नियुक्ति के लिए आवेदन भेजें: https://acharyaprashant.org/hi/hiring...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: शब्दयोग सत्संग, 11.05.2019, हरिद्वार, उत्तराखंड, भारत <br /><br />प्रसंग:<br />चित्त पिया न जाये असाधों,<br />उब्भे साह न रहंदे,<br />असीं मोइआं के परले पार होये,<br />जीवंदिआं विच बहंदे,<br />अज कि मलक तगादा सानूं,<br />होसी बज कहाणा।<br /> <br />अर्थ: हमारी हालत यह है कि हम न तो चित लेट सकते हैं और न पट। ऊर्ध्वमुख श्वास तक नहीं निकलते। हम तो मरे हुओं के भी पार जा चुके हैं और जीवितों के बीच रहने का भ्रम पाले हुए हैं। आज या कल मृत्यु तकाज़ा करने अवश्य आएगी और उस समय बड़ा कहर होगा। <br />~ बाबा बुल्लेशाह<br /><br /><br />~ इतना कठिन क्यों है ख़ुद को भूलना?<br />~ साधना में ख़ुद को भुलाना क्यों ज़रूरी है?<br />~ हम स्वयं को महत्वपूर्ण क्यों समझते हैं?<br />~ क्या हम वास्तव में स्वयं को जानते हैं?<br />~ बुल्लेशाह जी को कैसे समझें?<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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