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प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता कैसा हो? || आचार्य प्रशांत (2024)

2024-07-26 0 Dailymotion

634 views Premiered 6 hours ago #acharyaprashant<br />पूरा वीडियो: दर्द पक्का है, इसलिए मुस्कुराओ || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2024)<br />लिंक: • दर्द पक्का है, इसलिए मुस्कुराओ || आचा... <br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: 12.06.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ छोटी-छोटी समस्या बहुत परेशान करे तो क्या करें?<br />~ उलझनों से कैसे बचे?<br />~ अपने दर्द से कैसे बात करें?<br />~ प्रकृति के साथ हमारा रिश्ता कैसा हो? <br />~ स्वस्थ इंद्रियाँ होने से दुख दूर कैसे होता है?<br /><br />आपदः सम्पदः काले दैवादेवेति निश्चयी। <br />तृप्तः स्वस्थेन्द्रियो नित्यं न वाञ्छति न शोचति ।।<br />~ अष्टावक्र गीता, अध्याय 11, श्लोक 3<br /><br />अन्वय: काले = समय में; आपदः = आपत्तियाँ; च = और; सम्पदः = सम्पत्तियाँ; दैवात् एव = देवयोग से ही होती है; इति निश्चय = ऐसा निश्चय करने वाला पुरुष; नित्यं तृप्तः स्वस्थेन्द्रियः = नित्य संतुष्ट व स्वस्थेन्द्रिय हुआ; न वाञ्छति = अप्राप्त वस्तु की इच्छा नहीं करता है; च = और; न = न; शोचति = नष्ट हुई वस्तु को शोचता है ।। <br /><br />भावार्थ: समय में आपत्तियाँ और सम्पत्तियाँ दैव (प्रारब्ध) से होती हैं, ऐसा जो पुरुष निश्चय कर लेता है, वह सदा ही तृप्त रहता है। उसकी इन्द्रियाँ सदा ही स्वस्थ रहती हैं। न तो वह प्राप्ति की इच्छा करता है और न ही खोने पर शोक करता है।<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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