♂️ आचार्य प्रशांत से समझे गीता और वेदांत का गहरा अर्थ, लाइव ऑनलाइन सत्रों से जुड़ें:<br />https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant<br /><br />वीडियो जानकारी: 03.08.24, गीता समागम, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br /><br />श्रीमद्भगवद्गीता, श्लोक 4.36<br />अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः । <br />सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं संतरिष्यसि ।।<br /><br />अन्वयः<br />चेत् (यदि) सर्वेभ्यः (सब) अपि पापेभ्यः (समस्त पापियों से) पापकृत्तमः (तुम अधिक [पापी हो]) सर्व (सब) वृजिनं (पाप-समुद्र को) ज्ञानप्लवेन एव (ज्ञान रूप बेड़े पर सवार होकर) सन्तरिष्यसि (उत्तीर्ण हो सकोगे) ॥<br /><br />अर्थः<br />अगर सब पापियों से अधिक पापी तुम अपने आप को समझ पाओ, तो ज्ञान रूपी बेड़े पर सवार होकर के पाप समुद्र से पार हो जाओगे।<br /><br />काव्यात्मक अर्थ<br />देख खुद को गौर से <br />कपट है भीतर कितना <br />यही ज्ञान मुक्ति दे <br />मुक्ति माने देखना<br /><br />~ पाप क्या है?<br />~ ज्ञान क्या है?<br />~ सबसे बड़ा पापी कौन है?<br />~ कृष्ण से क्या माँगना चाहिए?<br />~ प्रेम क्या है?<br />~ आध्यात्मिक व्यक्ति पाप के बारे में क्या पूछता है?<br />~ ज्ञान की प्रक्रिया क्या है?<br />~ सत्य कब देख पाएंगे?<br />~ गलत निर्णयों का सबसे बड़ा नुकसान क्या है?<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~