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चार पुरुषार्थ कौन से हैं? इनमें से तीन को व्यर्थ क्यों कहा?||आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर(2024)

2024-10-08 0 Dailymotion

‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं?<br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir...<br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं?<br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?...<br /><br />➖➖➖➖➖➖<br /><br />#acharyaprashant #Dharam #purusharth <br /><br />वीडियो जानकारी: 12.01.24, वेदांत संहिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br /><br />विहाय वैरिणं काममर्थ चानर्थसंकुलम् । <br />धर्ममप्येतयोर्हेतुं सर्वत्रानादरं कुरु ॥ १ ॥<br /><br />भावार्थ: अपने शत्रु काम-भोग और अनर्थ-संकुल अर्थ तथा इन दोनों के कारण धर्म को भी छोड़कर सर्वत्र उपेक्षा का भाव रखो ॥१॥<br /><br />~ अष्टावक्र गीता, श्लोक 10.1 <br /><br />जिस धर्म का तुम पालन या सेवन कर रहे हो, या अनुष्ठान कर रहे हो, वो धर्म तो तुमको बस अर्थ और काम ही सिखा रहा हैI<br />ऐसा धर्म, जो हमको मिटाने की जगह, और पुष्ट करे, उसका भ्रम काटने की जगह, उसको और अंधेरे में रखे, और मूर्छित कर दे ,बेहोश कर दे, ऐसा धर्म तो किसी काम का नहींI <br />जो प्रचलित धर्म रहा है, अधिकतर, अधिकांश समय ऋषि अष्टावक्र के सामने भी ऐसा ही रहा होगा। <br />धर्म माने वो, जो चेतना को उसके मनतव्य, उसकी मंजिल तक पहुँचा देI धर्म माने वो, जो चेतना को उसके अंत तक पहुँचा देI तो चेतना को तो प्रेम है धर्म से। चेतना सदा धर्म की ही खोज में रहती हैI<br /><br />~ चार पुरुषार्थ कौन से हैं?<br />~ पुरुषार्थ का प्रमुख तत्व क्या है?<br />~ पुरुषार्थ में धर्म क्या है?<br />~ मनुष्य का सबसे बड़ा पुरुषार्थ क्या है?<br />~ धर्मग्रंथों का क्या महत्त्व है?<br />~ क्या धर्मग्रन्थ पढ़ना अति आवश्यक है?<br />~ कौनसी ज़िम्मेदारी है जो हमें सदा ही पूरी करनी है?<br />~ धर्मग्रंथों से कैसे सीखें?<br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~

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