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इतने बड़े अधिकारी हो तुम? || आचार्य प्रशांत, अष्टावक्र गीता पर (2020)

2024-11-02 0 Dailymotion

‍♂️ आचार्य प्रशांत से मिलना चाहते हैं? <br />लाइव सत्रों का हिस्सा बनें: https://acharyaprashant.org/hi/enquir... <br /><br /> आचार्य प्रशांत की पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं? <br />फ्री डिलीवरी पाएँ: https://acharyaprashant.org/hi/books?... <br /><br />~~~~~~~~~~~~~ <br /><br />वीडियो जानकारी: हार्दिक उल्लास शिविर, 19.01.2020, वाराणसी, उत्तर प्रदेश, भारत <br /><br />प्रसंग: <br />न त्वं देहो न ते देहो भोक्ताकर्ता न वा भवान्। <br />चिद्रूपोऽसि सदा साक्षी निरपेक्षः सुखं चर॥ <br /><br />न तुम शरीर हो और न यह शरीर तुम्हारा है, न ही तुम भोगने वाले अथवा करने वाले हो, <br />तुम चैतन्य रूप हो, शाश्वत साक्षी हो, इच्छा रहित हो, अतः सुखपूर्वक रहो॥ <br /><br />~अष्टावक्र गीता (अध्याय १५, श्लोक ४) <br /><br />रागद्वेषौ मनोधर्मौ न मनस्ते कदाचन। <br />निर्विकल्पोऽसि बोधात्मा निर्विकारः सुखं चर॥ <br /><br /> राग और द्वेष मन के धर्म हैं और तुम किसी भी प्रकार से मन नहीं हो, तुम कामनारहित हो, <br /> ज्ञान स्वरुप हो, विकार रहित हो, अतः सुखपूर्वक रहो॥ <br /><br />~अष्टावक्र गीता (अध्याय १५, श्लोक ५ ) <br /><br />~ आनंद का सुपात्र कौन और कैसे बने? <br />~ अष्टावक्र गीता का उद्देश्य क्या हैं? <br />~ अपने भीतर निरंतर पात्रता कैसे विकसित करें? <br />~ क्या शांति के रास्ते में क्या शरीर और मन बाधा बनते हैं? <br />~ लगातार शांति कैसे बनी रहे? <br /><br />संगीत: मिलिंद दाते <br />~~~~~~~~~~~~~

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