वीडियो जानकारी: 04.01.2020, विश्रांति शिविर, पुणे, महाराष्ट्र, भारत <br /><br />प्रसंग: <br />संयत: सततं युक्त आत्मवान विजितेन्द्रिय:। <br />तथा य आत्मनात्मानं सम्पृयक्त: पृपश्यति।। <br />(श्लोक 20, अध्याय 4, श्री उत्तर गीता) <br /><br />भावार्थ: जो साधक सदा संयमपरायण योगयुक्त, मन को वश में करनेवाला और जितेन्द्रिय है, वही आत्मा से प्रेरित होकर बुद्धि के द्वारा उसका साक्षात्कार कर सकता है। <br /><br />~ क्या बुद्धि के द्वारा आत्मा का साक्षात्कार हो सकता है? <br />~ बुद्धि को किसकी सेवा में लगाना चाहिए? <br />~ आत्मा का साक्षात्कार कैसे हो? <br />~ संसार में प्राप्ति का अर्थ क्या? <br />~ प्रत्यक्ष माने क्या? <br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते <br />~~~~~~~~~~~~