वीडियो जानकारी: 23.07.23, संत सरिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br /><br />"मेरा तेरा मनुवां कैसे एक होइ रे" <br /> संत कबीर <br /><br />~ मन का एक होना ज़रूरी क्यों है? <br />~ एक का दूसरे से अलग होना समस्या क्यों है? <br />~ अस्तित्त्व ही विभाजन है ? (Existence is division) <br />~ समाधान के लिए समस्या का ज्ञान होना क्यों ज़रूरी है? <br />~ आत्मज्ञान क्यों ज़रूरी है? <br />~ ज्ञानी कौन है? <br /><br />~ तेरा मेरा मनुवां कैसे एक होइ रे। <br />मैं कहता हूँ आँखन देखी, तू कहता कागद की लेखी । <br />मैं कहता सुरझावन हारी, तू राख्यो अरुझाई रे ॥ <br />मैं कहता तू जागत रहियो, तू जाता है सोई रे। <br />मैं कहता निरमोही रहियो, तू जाता है मोहि रे । <br />जुगन-जुगन समझावत हारा, कहा न मानत कोई रे । <br />तू तो रंगी फिरै बिहंगी, सब धन डारा खोई रे ॥ <br />सतगुरु धारा निर्मल बाहै, बामे काया धोई रे। <br />कहत कबीर सुनो भाई साधो, तब ही वैसा होई रे। <br />~ संत कबीर ~ <br /><br />~ भला हुआ मोरी मटकी फूटी, <br />मैं पनिया भरन से छूटी मोरे सर से टली बला ॥ <br /> ~संत कबीर~ <br /><br />~ माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । <br />आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर ॥ <br /> ~संत कबीर~ <br /><br />संगीत: मिलिंद दाते <br />~~~~~