वीडियो जानकारी: 14.05.24, वेदान्त संहिता, ग्रेटर नॉएडा <br /><br />प्रसंग: <br />~ आनंद क्या है?<br />~ आत्मज्ञान का क्या अर्थ है?<br />~ विकार का क्या अर्थ है?<br />~ एक ही बात को अलग-अलग तरीकों से क्यों बोला जाता है?<br />~ आखिरी बात क्या है?<br /><br />अष्टावक्र गीता - 11.1<br />भावाभावविकारश्च स्वभावदिति निश्चयी । <br />निर्विकारो गतक्लेशः सुखेनैवोपशाम्यति ॥ १ ॥ <br /><br />अन्वय: <br />भावाभावविकारः = भाव और अभाव का विकार; स्वभावात् = स्वभाव से होता है; इति = ऐसा; निश्चयी = निश्चय करने वाला; निर्विकारः = विकार-रहित; गतक्लेशः = क्लेश-रहित पुरुष; सुखेन एव = सुख से ही; उपशाम्यति = शान्ति को प्राप्त होता है। <br /><br />भावार्थ: <br />भाव से अभाव और अभाव से भावरूप विकार स्वभाव से ही होते रहते हैं। <br />जो ऐसा निश्चय कर लेता है, वह विकार एवं क्लेश से रहित हो जाता है और उसे अनायास ही शान्ति प्राप्त होती है ॥ १ ॥<br /><br /><br />पानी में मीन पियासी, मोहि सुन-सुन आवे हाँसी। <br /> ~ संत कबीर<br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~