भजु गौरांग भजु गौरांग,<br /> भजु गौरांगेर नाम रे।<br />एइ गौरांग भजने वारे,<br /> जायं हरि के धाम रे।<br />एइ गौरांग नदिया वारे,<br /> ब्रज के राधे श्याम रे।<br />एइ गौरांग नदिया वारे,<br /> अवध के सीता राम रे।<br />भीतर श्याम गौर बाहर ते,<br /> युगल रूप अभिराम रे।<br />श्यामा श्याम रूप होकर भी,<br /> टेरत श्यामा श्याम रे।<br />जगाई मधाई सम पतितन को,<br /> दीन्यो आपुन धाम रे।<br />एइ गौरांग निज जनहुं को,<br /> पुनि पुनि करत प्रणाम रे।<br />एइ गौरांग रो रो कर कह,<br /> देहु भीख हरि नाम रे।<br />धनि गौरांग धनि उन परिजन,,<br /> धनि धनि नदिया ग्राम रे।<br />कलिमल ग्रसित पतित सरताजहुं,<br /> दिए प्रेम निष्काम रे।<br />'हरि बोल हरि बोल' बोल बोल के,<br /> किय विभोर बिनु दाम रे।<br />बिनु ही शस्त्र उठाए असुरन,<br /> दीन्यो आपुन धाम रे।<br />हिंसक सिंह व्याघ्रहू़ं नाच्यो,<br /> सुनि इन मुख हरि नाम रे।<br />अपने दासहुं के पद गहि कह,<br /> देहु प्रेम निष्काम रे।<br />एइ गौरांग सब सों यह कह,<br /> भेद न नामी नाम रे।<br />एइ गौरांग बतायो कलि महं,<br /> केवल हरि को नाम रे।<br />भजु *'कृपालु'* मन युगल एक तनु,<br /> छिन छिन आठों याम रे।<br /><br /><br />🌷🌷 *ब्रज रस माधुरी-१*🌷🌷<br /><br /> जगद्गुरु श्री कृपालुजी महाराज