<p>असम के उदलगुरी जिले के एक शांत कोने में, रिटायर्ड चाय बागान वर्कर अमृत कुमार हजारिका चाय के पेड़ के बेकार पड़े ठूंठों को जानवरों, मानव आकृतियों और सांस्कृतिक रूपांकनों की जीवंत मूर्तियों में बदल रहे हैं. हजारिका की कला को शानदार बनाने वाली बात यह है कि वे इसका इस्तेमाल पैसे कमाने के लिए नहीं करने की सोच बना चुके हैं. वे अपनी कृतियों को बेचते नहीं हैं, बल्कि जिन लोगों को ये पसंद आती हैं उन्हें वे तोहफे के तौर पर दे देते हैं. हजारिका की कुछ कृतियों में सांस्कृतिक आकृतियां, पारंपरिक नृत्य दृश्य, धार्मिक प्रतीक और मोर और हिरण जैसे जानवरों की बारीक नक्काशी शामिल हैं. हजारिका की कलाकृतियां यह संदेश देती है कि कला के लिए भव्य स्टूडियो या महंगी सामग्री की जरूरत नहीं होती. इसके लिए तो बस जुनून, सादगी और रचनात्मक सोच जरूरी है.</p>