<p>हमीरपुर में चांदी की मछली की कारीगरी का काम होता है. यहां रहने वाला सोनी परिवार कई पीढ़ियों से इस कला को सहेजने में लगा हुआ है. लेकिन आसमान छूते चांदी के दाम ने इस कला के कारीगरों को मुश्किल में डाल दिया है</p><p>विक्टोरिया ने चांदी की मछली को समझ लिया था असली</p><p>ब्रिटिश शासन में जब बुंदेलखंड की धरती से निकलकर लंदन की प्रदर्शनी में चांदी की मछली पहुंची तो महारानी विक्टोरिया ने मछली की लचक और बारीकी देखकर इसे असली समझ लिया था. कला से प्रभावित होकर उन्होंने तुलसीदास सनी को 1807 में मेडल और सिक्का भेंट किया.</p><p>सोनी परिवार काल को सहेजने की कर रहा कोशिश</p><p>मौदहा कस्बे का सोनी परिवार आज इस कला को बचाने में जुटा हुआ है. इस मछली की डिमांड देश के साथ विदेशों में है. कभी इस कस्बे में तीन परिवार इस काम को करते थे, लेकिन युवा पीढ़ी की बेरुखी ने आज इस कला को विलुप्त होने के कागार पर पहुंचा दिया है.</p><p>चांदी के तार से बनती है मछली</p><p>चांदी का तार खींचकर पट्टियां बनाई जाती है फिर इन्हें पीट-पीटकर महीन जालियां बनाई जाती हैं. यही जाली चांदी की इस मछली को लचक देती है.मशीन से ऐसी कारीगरी नहीं हो सकती है. हाथ से ही सारा काम करना पढ़ता है.</p><p>कला को बचाने के लिए सरकार से मदद की दरकार</p><p>चांदी के आसमान छूते दाम ने इस कारीगरों की कमर तोड़कर रख दी है. इन्होंने सरकार से 0% ब्याज पर 10 किलो चांदी का लोन देने की मांग की है. वहीं इस काल को GI टैग और जिला एक उत्पाद योजना में शामिल करने की भी मांग रखी है</p>