<p>दीपावली के दूसरे दिन उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ का आसमान रंग-बिरंगी पतंगों से पट जाता है. बच्चों से लेकर बूढ़े तक, सब पतंग के रंगों में खो जाते हैं. नवाबों के इस शहर में पंतग को लेकर गजब का क्रेज आज के दिन देखने को मिलता है.</p><p>जमघट के दिन लखनऊ की हर छत पर पंतग उड़ती है. इस बार योगी-मोदी की पतंग की गजब की डिमांड थी. दीये वाली पतंग भी मार्केट में खूब बिक रही थी. एक दुकानदार ने बताया कि इस बार पांच हजार पतंग बनाई थी, एक भी नहीं बची.</p><p>पतंग उड़ाने में राजनेता भी पिछे नहीं रहे लोहिया पार्क पहुंचे उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने जमकर पेंच लड़ाया. राज्यसभा सांसद दिनेश शर्मा ने जमघट को गंगा-जमुनी त्योहार बताते हुए, पतंगबाजी को बिहार चुनाव से जोड़ दिया.</p><p>यहां की पतंगबाजी का इतिहास से भी नाता रहा है. नवाब मसूद अब्दुल्ला बताते हैं कि 1928 में साइमन कमीशन के विरोध में पतंगों पर “Simon Go Back” लिखकर उड़ाई गईं. ये बताते हैं कि नवाबों के टाइम में जब गोमती के तट पर पतंग उड़ाई जाती थी. तो चांदी के एक तोले की पूंछ लटकी रहती थी. कटने के बाद जिस गरीब को पंतग मिलती थी उससे इसका भला होता था.</p><p>तो नवाबों के दौर का पतंगबाजी का शौक, इस तहजीब के शहर में आज भी जिंदा है और यहां के लोग भी पतंगों की तरह गंगा जमुनी तहजीब के कई रंग समेटे हुए हैं.</p>